पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
निबंध से
प्रश्न 1.
खानपान की मिश्रित संस्कृति से लेखक का क्या मतलब है? अपने घर के उदाहरण देकर इसकी व्याख्या करें।
उत्तर-
खानपान की मिश्रित संस्कृति से लेखक का मतलब है- स्थानीय अन्य प्रांतों तथा विदेशी व्यंजनों के खानपान का आनंद उठाना यानी स्थानीय व्यंजनों के खाने-पकाने में रुचि रखना, उसकी गुणवत्ता तथा स्वाद को बनाए रखना। इसके अलावे अपने पसंद के आधार पर एक-दूसरे प्रांत को खाने की चीजों को अपने भोज्य पदार्थों में शामिल किया है। जैसे आज दक्षिण भारत के व्यंजन इडली-डोसा, साँभर इत्यादि उत्तर भारत में चाव से खाए जाते हैं और उत्तर भारत के ढाबे के व्यंजन सभी जगह पाए जाते हैं। यहाँ तक पश्चिमी सभ्यता का व्यंजन बर्गर, नूडल्स का चलन भी बहुत बढ़ा है। हमारे घर में उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय दोनों प्रकार के व्यंजन तैयार होते हैं। चूंकि, मैं उत्तर भारतीय हूँ । हमारा भोजन रोटी-चावल दाल है लेकिन इन व्यंजनों से ज्यादा इडली साँभर, चावल, चने-राजमा, पूरी, आलू, बर्गर अधिक पसंद किए जाते हैं।
प्रश्न 2
खानपान में बदलाव के कौन से फ़ायदे हैं? फिर लेखक इस बदलाव को लेकर चिंतित क्यों है?
उत्तर-
खानपान में बदलाव से निम्न फ़ायदे हैं-
1.एक प्रदेश की संस्कृति का दूसरे प्रदेश की संस्कृति से मिलना।
2.राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलना।
3.जल्दी तैयार होने वाले विविध व्यंजनों की विधियाँ उपलब्ध होना।
4.बच्चों व बड़ों को मनचाहा भोजन मिलना।
5.देश-विदेश के व्यंजन मालूम होना।
खानपान में बदलाव से होने वाले फ़ायदों के बावजूद लेखक इस बदलाव को लेकर चिंतित है क्योंकि उसका मानना है कि आज खानपान की मिश्रित संस्कृति को अपनाने से नुकसान भी हो रहे हैं जो निम्न रूप से हैं-
1.स्थानीय व्यंजनों का चलन कम होता जा रहा है जिससे नई पीढी स्थानीय व्यंजनों के बारे में जानती ही नहीं।
2.खाद्य पदार्थों में शुद्धता की कमी होती जा रही है।
3.उत्तर भारत के व्यंजनों का स्वरूप बदलता ही जा रहा है
प्रश्न 3
खान पान के मामले में स्वाधीनता का क्या अर्थ है?
उत्तर-
खानपान के मामले में स्वाधीनता का अर्थ है किसी विशेष स्थान के खाने-पीने का विशेष व्यंजन। जिसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक हो। जैसे कि मुंबई की पाव भाजी, दिल्ली के छोले कुलचे, मथुरा के पेड़े व आगरे के पेठे, नमकीन आदि। पहले स्थानीय व्यंजनों का प्रचलन था। हर प्रदेश में किसी न किसी विशेष स्थान का कोई-न-कोई व्यंजन अवश्य प्रसिद्ध होता था। भले ही ये चीजें आज देश के किसी कोने में मिल जाएँगी लेकिन ये शहर वर्षों से इन चीजों के लिए प्रसिद्ध हैं। लेकिन आज खानपान की मिश्रित संस्कृति ने लोगों को खाने-पीने के व्यंजनों में इतने विकल्प दे दिए हैं कि स्थानीय व्यंजन प्रायः लुप्त होते जा रहे हैं।
निबंध से आगे
प्रश्न 1
घर से बातचीत करके पता कीजिए कि आपके घर में क्या चीजें पकती हैं और क्या चीजें बनी-बनाई बाज़ार से आती हैं। इनमें से बाज़ार से आनेवाली कौन-सी चीजें आपके-माँ-पिता जी के बचपन में घर में बनती थीं?
उत्तर - विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
यहाँ खाने पकाने और स्वाद से संबंधित कुछ शब्द दिए गए हैं। इन्हें ध्यान से देखिए और उनका वर्गीकरण कीजिए-
प्रश्न 3.
छौंक चावल कढ़ी
• इन शब्दों में क्या अंतर है? समझाइए। इन्हें बनाने के तरीके विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग हैं। पता करें कि आपके प्रांत में इन्हें कैसे बनाया जाता है।
उत्तर -
विद्यार्थी स्वयं अभिभावक की सहायता से करें।
प्रश्न 4.
पिछली शताब्दी में खानपान की बदलती हुई तसवीर का खाका खींचें तो इस प्रकार होगा-
सन् साठ का देशक – छोले-भटूरे
सन् सत्तर का दशक – इडली, डोसा
सन् अस्सी का दशक – तिब्बती (चीनी) भोजन
सन् नब्बे का दशक – पीजा, पाव-भाजी
• इसी प्रकार आप कुछ कपड़ों या पोशाकों की बदलती तसवीर का खाका खींचिए।
भाषा की बात
प्रश्न 1.
खानपान शब्द खान और पान दो शब्दों को जोड़कर बना है। खानपान शब्द में और छिपा हुआ है। जिन शब्दों के योग में और, अथवा, या जैसे योजक शब्द छिपे हों, उन्हें द्वंद्व समास कहते हैं। नीचे द्वंद्व समास के कुछ उदाहरण दिए गए हैं। इनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए और अर्थ समझिए-
सीना-पिरोना
लंबा-चौड़ा भला-बुरा
कहा-सुनी चलना-फिरना
घास-फूस
उत्तर-
सीना-पिरोना – नेहा सीने-पिरोने की कला में काफ़ी अनुभवी है।
भला-बुरा – मैंने उसे भला-बुरा कहा।
चलना-फिरना – चलना-फिरना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
लंबा-चौड़ा – धनीराम का व्यापार लंबा-चौड़ा है।
कहा-सुनी – सास-बहू में खूब कहा-सुनी हो गई।
घास-फूस – उसका घर घास-फूस का बना है।
प्रश्न 2.
कई बार एक शब्द सुनने या पढ़ने पर कोई और शब्द याद आ जाता है। आइए शब्दों की ऐसी कड़ी बनाएँ। नीचे शुरुआत की गई है। उसे आप आगे बढाइए। कक्षा में मौखिक सामूहिक गतिविधि के रूप में भी इसे दिया जा सकता है
इडली – दक्षिण – केरल – ओणम् – त्योहार – छुट्टी – आराम
उत्तर-
आराम – कुर्सी, तरणताल – नहाना, नटखट – बालक, चंचल – बालिका।