मेरी दादी प्यारी दादी....
प्रेम प्रतिमा माँ है यदि तो
प्रतिमा का आधार हैं
दादी,
निराकारी ईश्वर की
साकार प्रतिमान हैं
दादी ।१।
अस्तित्व तरु का तब तक
है
जब तक चैतन्य है
जड़शक्ति,
कुनबा भी रहता हरा-भरा
मूलतत्व जो हैं दादी
।२।
धागे बिन मोती
बज़ूदहीन
‘पर’हीन पक्षी क्या उड़ते हैं?
आशीष से जिनकी हुए
ऊर्ध्व
परिवार-पिपासा हैं
दादी ।३।
उलझन होती जब भी किसी को
पुत्र-पौत्र या नत-नातिन,
सुलझाती हर गुत्थी को
हम सब का सहारा थीं दादी ।४।
रो लेती थीं वो
नोक-झोंक में
दुखी न हमको देखा
करतीं,
प्यार सदा ही करती थीं
वो
प्यार का सागर थीं
दादी ।५।
बिन दादाजी हिम्मत न
हारी
रहती थी घर में
किलकारी,
अब वो खुशी आएगी कैसे?
कब आओगी बताओ दादी ।६।
जैसे गंगा जल में मिलकर
हर एक स्रोत पाक हो जाता,
आकर वैसे पास तुम्हारे
मन शीतल होता था दादी ।७।
जीवन के हर इक क्षण
में
साथ सदा ही रहना दादी,
आशीष तुम्हारा बना रहे
मेरी दादी, प्यारी
दादी ।८।।
-अभिषेक तिवारी
(हरिॐ)
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