बादल को बनते देखा है !
भोर में संसार सकल सोता है जब,
प्रकृति को मुस्कुराते देखा है....
बादल को बनते देखा है !
अंधकार में डूबी रहती दुनिया सारी,
सूरज की रोशनी को इठलाते देखा है...
बादल को बनते देखा है !
जीवन भर ली प्रदूषित जलवायु ,
यहाँ मैंने हरियाली का भण्डार देखा है...
बादल को बनते देखा है !
ध्यान-धारणा को जहाँ करनी पड़ती थी –
कितनी मस्सकत पहले,
मन को स्वतः समाधिस्थ होते देखा है...
बादल को बनते देखा है !
विषवायु से बचने के लिए-
भागते थे बगीचों में सदा,
अहर्निश यहाँ शांति पाते देखा है...
बादल को बनते देखा है !
कब होगी बारिश ! कब गरजेंगे बादल !
करते थे इंतज़ार कभी,
मनचाही वर्षा
चहुँओर विहंगम दृश्य का –
परिप्रेक्ष्य देखा है...
बादल को बनते देखा है !
माँ के आँचल में
समा जाती थी सारी मुश्किलें पहले,
जीवन संघर्ष का रसास्वाद
अब लेते देखा है..
बादल को बनते देखा है !
~अभिषेक तिवारी