गिरि से मेघ उदित होता है.....
प्रिया मिलन को अविचल व्याकुल
यक्षराजवत् रहता है मन,
अन्तर्मन के अवगाहन को
गिरि से मेघ उदित होता है।
मायूसी लाचारी अथवा
खिन्न दुखित कितने भी हो तुम,
देख नजारा - यहाँ सृष्टि का
गिरि से मेघ उदित होता है।
मन प्रसन्न तन सुखमय होवे
भ्रमण यहाँ जो करे अहर्निश,
ईश्वर के निराकार रूप में
गिरि से मेघ उदित होता है।
गोपिन व्यथा मिटाने कान्हा,
महारास को रचा था जैसे
द्वन्द्व-प्रपंच-मनशांति के लिए
गिरि से मेघ उदित होता है।
-अभिषेक तिवारी