प्रेम-वेदना
ज़िद की भी अपनी हद है
आगे इसके सब बेवश है...
प्यार को करना, करते रहना
प्यार का मतलब, बस “प्यार” है।
लेकिन ज़िद में
खुद की हट् में
बिन बातों के बात बढ़ाना
प्रियतम की उम्मीद-प्रेम को
ठुकराकर सदा ही गलती
दोहराना दोहराते रहना
तुम कहो क्या ये उचित है?
बताओ मुझको अब सोच समझकर,
किरण बिना रहता क्या दिवाकर
चाँदनी बिन कुछ नहीं निशाकर
क्या मिलता फिर तुमको अपने
प्रियतम का मन-दिल दुखाकर ।
बार-बार एक ही गलती, इक ही जिद,
यही बात खटकती।
प्रेम करो बस प्रेम करो
नश्वर है तन ये जीवन भी
न जाने कब किसको मिटना
पछतावा होता जब,
तन बन जाता है ये मिट्टी।
मूल्यवान केवल “समय” है,
जो मिलता है “मूल्यवान” को।
तय करो क्या चाहती हो तुम,
“अभि”प्रेम या ज़िद तुम्हारी।
जहाँ ज़िद जहाँ केवल हट् है
प्रेम नहीं कर सकते हैं हम,
समर्पित है जिसका तन-मन
उसको सौंपता हूँ मैं ये जीवन।
लेकिन नफरत,
बात न करना,
जिद्दी बन कर गलती करना
हमको ये स्वीकार नहीं
बिन पानी अब प्यास नहीं।
प्रेम है तुमसे, विश्वास तुमी पे
क्या चाहती हो
सोचो विचारो
इसके लिए तुम बाध्य नहीं।।
“गलती शोधन, प्रेम विवर्धन
तन-मन-धन जीवन समर्पण।“
ऐसी जो बनो प्रेमिका मेरी,
मेरा जीवन तुमको अर्पण।
किस मुख से अब बात करें
जब समय पर तुमसे मिल न पायें
बात का तुम समय न दो
समय आये तो भूल जाओ,
किस मुख से अब बात करें
जब उत्तर का रिप्लाई न दो
सेकेण्डों में उत्तर पाओं
घंटो तक इंतजार कराओ।
बात बात पे भूल जाना,
बात न करना
और इठलाना
जब-मन हो तब बात करो
न हो तो फिर भूल जाना।
ये अच्छी बात नहीं,
प्रेम है तुमसे टाइमपास नहीं।
आते ही संदेश का
तुमको देते हम हैं उत्तर,
उलट काम तुम करते सदा ही
नहीं देते ऐसे प्रत्युत्तर।
और कहने को अब कुछ नहीं
बस अब मेरे अंतिम वाक्य सुनो
यजि प्रेम है तुमको मुझसे
यथावत् स्वीकार करो
जिद न करो हट न करो
समय समय पर ख्याल करो
चाहे मन जब बातें करना
उस पल तुम तैयार रहो।
यदि नहीं कोई बात नहीं,
तुम जो चाहो वैसा होगा
अभि तो होगा तन से तेरा,
मन में वो अहसास न होगा।