प्रिय विद्यार्थियों,
आपको यहाँ योग का महत्व बताने वाले कुछ महत्वपूर्ण संस्कृत श्लोक हिन्दी और अंग्रेजी अनुवाद के साथ वर्णन किये जा रहे हैं। इनको लिखिए याद कीजिए और जीवन में अपनाइए ।
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Transliteration-
Yogaśchittavr̥ttinirodhaḥ
English Translation-
Yoga is restraining the mind-stuff from taking various forms.
Hindi Translation-
चित्त अर्थात अन्तःकरण की
वृत्तियों का निरोध सर्वथा रुक जाना योग है।
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समत्वं योग उच्यते
Transliteration-
Samatvaṁ Yoga Uchyate
English Translation-
Evenness of Mind is known as Yoga
Hindi Translation-
मन का समभाव ही योग कहलाता है।
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मनः प्रशमनोपायो योग इत्यभिधीयते।
Transliteration-
Manaḥ Praśamanopāyo Yoga Ityabhidhīyate.
English Translation-
The recourse to pacify the mind is called yoga.
Hindi Translation-
मन के प्रशमन के उपाय को योग
कहते हैं।
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योगः कर्मसु कौशलम्।
Transliteration-
Yogaḥ Karmasu Kauśalaṁ
English Translation-
Yoga is excellence in action.
Hindi Translation-
योग ही कर्मों में कुशलता है।
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योगेन चित्तस्य पदेन वाचां मलं
शरीरस्य च वैद्यकेन।
योSपाकरोत्तं
प्रवरं मुनीनां पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोSस्मि।।
Transliteration-
Yogen Chittasya Padena Vāchāṁ Malaṁ Śarīrasya Cha Vaidyaken.
Yo'pākarottaṁ Pravaṁ Munīnāṁ Patanjaliṁ Prāñjalirānato'smi.
English Translation-
Who
gave Yoga for serenity and sanctity of mind, grammar for clarity and purity of
speech, and medicine for perfection of health, let us bow before the noblest of
sages, Patanjali.
Hindi Translation-
जिन्होंने मन की शांति और
पवित्रता के लिए योग दिया, भाषण की स्पष्ठता और शुद्धता के
लिए व्याकरण दिया, और स्वास्थ्य की पूर्णता के लिए
औषधि, आइए हम महान ऋषि पतञ्जलि को नमन
करें।
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योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं
त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा
समत्वं योग उच्यते।। Gita-2.48
Transliteration-
Yogasthaḥ Kuru Karmāṇi Sangaṁ Tyaktvā Dhanañjaya.
Siddhyasiddhyoḥ Samo Bhūtvā Samatvaṁ Yoga Uchyate.
English Translation-
Be
steadfast in the performance of your duty, O Arjun, abandoning attachment to
success and failure. Such equanimity is called Yoga.
Hindi Translation-
हे धनञ्जय तू आसक्तिका त्याग
करके सिद्धि असिद्धिमें सम होकर योगमें स्थित हुआ कर्मोंको समत्व ही योग कहा जाता
है।
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व्यायाम का महत्व बताने हेतु कुछ अन्य संस्कृत श्लोक (अनुवाद सहित)
व्यायामात्
लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं। आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं
सर्वार्थसाधनम् ॥
भावार्थ :
व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल और सुख
की प्राप्ति होती है। निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य
सिद्ध होते हैं ।
व्यायामं कुर्वतो
नित्यं विरुद्धमपि भोजनम् । विदग्धमविदग्धं वा निर्दोषं परिपच्यते ॥
भावार्थ :
व्यायाम करने वाला मनुष्य गरिष्ठ, जला हुआ अथवा कच्चा किसी प्रकार का भी खराब
भोजन क्यों न हो, चाहे उसकी प्रकृति के भी विरुद्ध हो, भलीभांति पचा जाता है और कुछ भी हानि नहीं
पहुंचाता ।
शरीरोपचयः
कान्तिर्गात्राणां सुविभक्तता । दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मृजा ॥
भावार्थ :
व्यायाम से शरीर बढ़ता है । शरीर की कान्ति
वा सुन्दरता बढ़ती है । शरीर के सब अंग सुड़ौल होते हैं । पाचनशक्ति बढ़ती है ।
आलस्य दूर भागता है । शरीर दृढ़ और हल्का होकर स्फूर्ति आती है । तीनों दोषों की
(मृजा) शुद्धि होती है।
न चैनं
सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति । स्थिरीभवति मांसं च व्यायामाभिरतस्य च ॥
भावार्थ :
व्यायामी मनुष्य पर बुढ़ापा सहसा आक्रमण नहीं
करता, व्यायामी पुरुष का शरीर और हाड़ मांस सब
स्थिर होते हैं ।
श्रमक्लमपिपासोष्णशीतादीनां
सहिष्णुता । आरोग्यं चापि परमं व्यायामदुपजायते ॥
भावार्थ :
श्रम थकावट ग्लानि (दुःख) प्यास शीत (जाड़ा)
उष्णता (गर्मी) आदि सहने की शक्ति व्यायाम से ही आती है और परम आरोग्य अर्थात्
स्वास्थ्य की प्राप्ति भी व्यायाम से ही होती है ।
न चास्ति
सदृशं तेन किंचित्स्थौल्यापकर्षणम् । न च व्यायामिनं मर्त्यमर्दयन्त्यरयो भयात् ॥
भावार्थ :
अधिक स्थूलता को दूर करने के लिए व्यायाम से
बढ़कर कोई और औषधि नहीं है, व्यायामी मनुष्य से उसके शत्रु सर्वदा डरते
हैं और उसे दुःख नहीं देते ।
समदोषः
समाग्निश्च समधातुमलक्रियः । प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते ॥
भावार्थ :
जिस मनुष्य के दोष वात, पित्त और कफ, अग्नि (जठराग्नि), रसादि सात धातु, सम अवस्था में तथा स्थिर रहते हैं, मल मूत्रादि की क्रिया ठीक होती है और शरीर की सब क्रियायें समान और उचित हैं, और जिसके मन इन्द्रिय और आत्मा प्रसन्न रहें वह मनुष्य स्वस्थ है ।
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