Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 12
वाङ्मनः प्राणस्वरूपम्
👇HINDI TRANSLATION👇
यह पाठ छान्दोग्योपनिषद् के छठे अध्याय से संग्रहीत है। इसमें मन, प्राण तथा वाक् के स्वरूप का वर्णन बड़े रोचक संवाद के द्वारा प्रस्तुत किया गया है।
संस्कृत वाक्य |
हिन्दी अनुवाद |
श्वेतकेतु:
– भगवन्! श्वेतकेतुरहं वन्दे। |
श्वेतकेतु
– हे भगवन्! मैं श्वेतकेतु (आपको) प्रणाम करता हूँ। |
आरुणि: –
वत्स! चिरञ्जीव। |
आरुणि – हे पुत्र! दीर्घायु हो। |
श्वेतकेतु:
– भगवन्! किञ्चित्प्रष्टुमिच्छामि। |
श्वेतकेतु
– हे भगवन्! मैं कुछ पूछना चाहता हूँ? |
आरुणि: –
वत्स! किमद्य त्वया प्रष्टव्यमस्ति? |
आरुणि – हे पुत्र! आज तुम क्या पूछना
चाहते हो? |
संस्कृत वाक्य |
हिन्दी अनुवाद |
श्वेतकेतु:
– भगवन्! ज्ञातुम् इच्छामि यत् किमिदं मन:? |
श्वेतकेतु – हे भगवन् ! मैं पूछना
चाहता हूँ कि यह मन क्या है? |
आरुणि: –
वत्स! अशितस्यान्नस्य योऽणिष्ठ: तन्मन:। |
आरुणि –
हे पुत्र! पूर्णतः पचाए गए अन्न का सबसे छोटा भाग मन होता है। |
श्वेतकेतु:
– कश्च प्राण:? |
श्वेतकेतु – और प्राण क्या है? |
आरुणि: –
पीतानाम् अपां योऽणिष्ठ: स प्राण:। |
आरुणि –
पिए गए तरल द्रव्यों का सबसे छोटा भाग प्राण होता है। |
संस्कृत वाक्य |
हिन्दी अनुवाद |
श्वेतकेतु:
– भगवन्! का इयं वाव्? |
श्वेतकेतु
– हे भगवन्! वाणी क्या है? |
आरुणि: –
वत्स! अशितस्य तेजसो योऽणिष्ठ: सा वाक्। |
आरुणि – हे पुत्र! ग्रहण की गई ऊर्जा
का जो सबसे छोटा भाग है, वह वाणी है। |
सौम्य!
मन: अन्नमयं, प्राण: आपोमय:, वाव् च तेजोमयी भवति
इत्यप्यवधार्यम्। |
हे
सौम्य! मन अन्नमय, प्राण जलमय तथा वाणी तेजोमयी होती है-यह भी समझ लेना चाहिए। |
श्वेतकेतु:
– भगवन्! भूय एव मां विज्ञापयतु। |
श्वेतकेतु – हे भगवन्! आप मुझे पुनः
समझाइए। |
संस्कृत वाक्य |
हिन्दी अनुवाद |
आरुणि: –
सौम्य! सावधानं शृणु। मथ्यमानस्य दध्न: योऽणिमा, स उध्वर्ं समुदीषति, तत्सर्पि: भवति। |
आरुणि – हे सौम्य! ध्यान से सुनो। मथे
जाते हुए दही की अणिमा (मलाई) ऊपर तैरने लगती है, उसका घी बन जाता है। |
श्वेतकेतु:
– भगवन्! भवता घृतोत्पत्तिरहस्यम् व्याख्यातम्। भूयोऽपि श्रोतुमिच्छामि। |
श्वेतकेतु
– हे भगवन्! आपने तो घी की उत्पत्ति का रहस्य समझा दिया, मैं और भी सुनना चाहता हूँ। |
आरुणि: –
एवमेव सौम्य! अश्यमानस्य अन्नस्य योऽणिमा, स उध्वर्ं समुदीषति। |
आरुणि – सौम्य! इसी तरह खाए जाते हुए
अन्न की अणिमा (मलाई) ऊपर उठती है। |
तन्मनो
भवति। |
वह मन बन
जाती है। |
संस्कृत वाक्य |
हिन्दी अनुवाद |
अवगतं न
वा? |
समझ गए
या नहीं? |
श्वेतकेतु:
– सम्यगवगतं भगवन्! |
श्वेतकेतु – अच्छी तरह समझ गया भगवन्। |
आरुणि: –
वत्स! पीयमानानाम् अपां योऽणिमा स उध्वर्ं समुदीषति स एव प्राणो भवति। |
आरुणि –
हे पुत्र! पिए जाते हुए जल की अणिमा प्राण बन जाती है। |
श्वेतकेतु:
– भगवन्! वाचमपि विज्ञापयतु। |
श्वेतकेतु – हे भगवन्! वाणी के बारे
में भी समझाए। |
संस्कृत वाक्य |
हिन्दी अनुवाद |
आरुणि: –
सौम्य! अश्यमानस्य तेजसो योऽणिमा, स उध्वर्ं समुदीषति। सा खलु वाग्भवति। |
आरुणि – हे सौम्य! शरीर द्वारा ग्रहण
किए गए तेज (ऊर्जा) की अणिमा वाणी बन जाती है। |
वत्स!
उपदेशान्ते भूयोऽपि त्वां विज्ञापयितुमिच्छामि यत् अन्नमयं भवति मन:, आपोमयो भवति प्राण: तेजोमयी च भवति
वागिति। |
हे
पुत्र! उपदेश के अंत में मैं तुम्हें पुनः यही समझाना चाहता हूँ कि अन्न का
सारतत्व मन, जल का प्राण तथा तेज
का वाणी है। |
किञ्च
यादृशमन्नादिकं गृह्णाति मानवस्तादृशमेव तस्य चित्तादिकं भवतीति मदुपदेशसार:। |
इसके अतिरिक्त अधिक क्या मेरे उपदेश का
सार यही है कि मनुष्य जैसा अन्न ग्रहण करता है उसका मन, बुद्धि और अहंकार (चित्त) वैसा ही बन
जाता है। |
संस्कृत वाक्य |
हिन्दी अनुवाद |
वत्स!
एतत्सर्वं हृदयेन अवधारय। |
हे
पुत्र! इस सबको हृदय में धारण कर लो। ( अच्छी प्रकार से समझ लो ) |
श्वेतकेतु:
– यदाज्ञापयति भगवन्। एष प्रणमामि। |
श्वेतकेतु – जैसी आपकी आज्ञा भगवन्!
मैं आपको प्रणाम करता हूँ। |
आरुणि: –
वत्स! चिरञ्जीव। तेजस्वि नौ अधीतम् अस्तु (आवयो: अधीतम् तेजस्वि अस्तु)। |
आरुणि –
हे पुत्र! दीर्घायु हो, तुम्हारा अध्ययन तेजस्विता से युक्त हो। (हम दोनों की पढ़ाई तेजयुक्त
हो)। |
अभ्यासः
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत –
(क) अन्नस्य
कीदृशः भागः मनः?
(ख) मध्यमानस्य दनः अणिष्ठः भागः किं भवति?
(ग) मनः कीदृशं भवति?
(घ) तेजोमयी का भवति?
(ङ) पाठेऽस्मिन् आरुणिः कम् उपदिशति?
(च) “वत्स! चिरञ्जीव”-इति कः वदति?
(छ) अयं वाहः कस्मात् उपनिषद: संग्रहीत?
उत्तर:
(क) अणिष्ठः
(ख) सर्पिः
(ग) आशितान्न-अणिष्ठः
(घ) वाक्
(ङ) श्वेतकेतुम्
(च) आरुणिः
(छ) छान्दोग्योपनिषदः
प्रश्न 2.
अधोलिखितानां
प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(क)
श्वेतकेतुः सर्वप्रथमम् आरुणिं कस्य स्वरूपस्य विषये पृच्छति?
(ख) आरुणिः प्राणस्वरूपं कथं निरूपयति?
(ग) मानवानां चेतांसि कीदृशानि भवन्ति?
(घ) सर्पिः किं भवति?
(ङ) आरुणेः मतानुसारं मनः कीदृशं भवति?
उत्तर:
(क) श्वेतकेतुः सर्वप्रथमम् आकर्णि मनसः स्वरूपस्य विषये पृच्छति।
(ख) आरुणिः प्राणस्वरूपविषये कथयति ‘पीतानाम् अपां योऽणिष्ठः सः
प्राणः’ इति।
(ग) मानवः यादृशम् अन्नादिकं गृह्णाति तादृशम् एव तेषाम् चेतांसि
भवन्ति।
(घ) मध्यमानस्य दध्नः योऽणिमा ऊर्ध्वः समदीषति स तत्सर्पिः भवति।
(ङ) आरुणे: मतानुसारं मनः अन्नमयं भवति।
प्रश्न 3.
(अ) ‘अ’
स्तम्भस्य पदानि ‘ब’ स्तम्भेन दत्तैः पदैः सह यथायोग्यं योजयत –
अ – ब
1. मनः – अन्नमयम्
2. प्राण: – तेजोमयी
3. वाक् – आपोमयः
उत्तर:
अ – ब
1. मनः – अन्नमयम्
2. प्राणः – आपोमयः
3. वाक् – तेजोमयी
(आ)
अधोलिखितानां पदानां विलोमपदं पाठात् चित्वा लिखत –
(क) गरिष्ठः
(ख) अधः
(ग) एकवारम्
(घ) अनवधीतम्
(ङ) किञ्चित्
उत्तर:
(क) अणिष्ठः
(ख) ऊर्ध्वम्,
(ग) भूयः,
(घ) अवधीतम्,
(ङ) सर्वम्।
प्रश्न 4.
उदाहरणमनुसृत्य निम्नलिखितेषु
क्रियापदेषु ‘तुमुन्’ प्रत्ययं योजयित्वा पदनिर्माणं कुरुत –
यथा- प्रच्छ् + तुमुन् – प्रष्टुम्
(क) श्रु + तुमुन् = ………………..
(ख) वन्द् + तुमुन् = ………………..
(ग) पत् + तुमुन् = ………………..
(घ) कृ + तुमुन्। = ………………..
(ङ) वि + ज्ञा + तुमुन् = ………………..
(च) वि + आ + ख्या + तुमुन् = ………………..
उत्तर:
(क) श्रोतुम्,
(ख) वन्दितुम्.
(ग) पठितुम्.
(घ) कर्तुम्,
(छ)
विज्ञातुम्,
(च) व्याख्यातुम्।
प्रश्न 5.
(अ)
निर्देशानुसारं रिक्तस्थानानि पूरयत –
(क) अहं
किञ्चित् प्रष्टुम् ………..। (इच्छ – लट्लकारे)
(ख) मनः अन्नमयं ……… (भू – लट्लकारे)
(ग) सावधानं …………..। (श्रु – लोट्लकारे)
(घ) तेजस्वि नौ अधीतम् ……… (अस् – लोट्लकारे)
(ङ) श्वेतकेतुः आरुणे: शिष्यः ………..। (अस् – लङ्लकारे)
उत्तर:
(क) इच्छामि,
(ख) भवति,
(ग) श्रण.
(घ) अस्तु,
(ङ) आसीत्।
(आ)
उदाहरणमनुसृत्य वाक्यानि रचयत –
यथा- अहं स्वदेशं सेवितुम् इच्छामि।
(क) ………….
उपदिशामि।
(ख) ……….. प्रणमामि।
(ग) …………. आज्ञापयामि।
(घ) ………….. पृच्छामि।
(ङ) …………. अवगच्छामि।
उत्तर:
(क) अहं शिष्यम् उपदिशामि।।
(ख) अहम् गुरुम् प्रणमामि।
(ग) अहम् शिष्यं पुस्तकम् आनेतुम् आज्ञापयामि।
(घ) अहम् गुरुं प्रश्नं पृच्छामि।
(ङ) अहम् भवतः सङ्क्तम् अवगच्छामि।
प्रश्न 6.
(अ) सन्धिं
कुरुत –
(क) अशितल्य
+ अनस्य = …………….
(ख) इति + अपि + अवधार्यम् = …………….
(ग) का + इयम् = …………….
(घ) नौ + अधीतम् = …………….
(ङ) भवति + इति = …………….
उत्तर:
(क) अशितस्यान्नस्य,
(ख) इत्यप्यवधार्यम्.
(ग) केयम्,
(घ) नावधीतम्,
(ङ) भवतीति।
(आ)
स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(क)
मथ्यमानस्य दनः अणिमा ऊर्ध्व समुदीषति।
(ख) भवता घृतोत्पत्तिरहस्यं व्याख्यातम्।
(ग) आरुणिम् उपगम्य श्वेतकेतुः अभिवादयति।
(घ) श्वेतकेतुः वाग्विषये पृच्छति।
उत्तर:
(क) कस्य दध्नः अणिमा ऊवं समुदीषति?
(ख) केन घृतोत्पत्तिरहस्यं व्याख्यातम्?
(ग) आरुणिम् उपगम्य कः अभिवादयति?
(घ) श्वेतकेतुः कस्यविषये पृच्छति?
प्रश्न 7.
पाठस्य सारांशं पञ्चवाक्यैः लिखत।
उत्तर:
(क) अन्नमयं मनः भवति।।
(ख) आपोमयः प्राणः भवति एवं जलमेव जीवनं भवति।
(ग) तेजोमयी वाक् भवति।।
(घ) अश्यमानस्य तेजसः यः अणिमा, स ऊर्ध्वः
समुदीपति, सा खलु वाग्भवति।
(ङ) यादृशमन्नादिकं मानवः ग्रह्णाति तादृशमेव तस्य चित्तादिकं भवति।