तितली जैसी फुर्र् हो जाती...
उसकी इक मुस्कान पे जाऊँ
वारि वारि सदा ही मैं,
बातें चटपट करती है वो
और मगन मन रहती है |
उत्सुकता रहती है मुझको
जाने कब क्या करती है,
नखरे दिखाना टांग खींचना
हर बात में अच्छी लगती है |
तितली जैसी फुर्र हो जाती
बातें जब वो करती है,
'अभि' पुष्प पे मंडराती वो
तब मनभावन लगती है |
प्यार पिपासा थी जन्मों से
तुमने उसको शांत किया,
प्यार किया भरपूर भी मुझको
अपने दिल स्थान दिया |
जीवन के अब इस पड़ाव में
तुमको पाकर धन्य हुआ,
हूँ प्रसन्न खुशहाल हूँ मैं अब
तुमने मेरे मन को छुआ |
सदा रहे तू साथ में मेरे
यही चाहता अब ये मन,
भोग-मोक्ष मिल पाएं हम
तुझे समर्पित ये जीवन ...